Monday, October 26, 2015

परमेश्वर ने मानव को अपनी ही छवि में बनाया  उन्होंने उसे शक्ति और समझदारी दी जिससे की वह पृथ्वी पर  सामंजस्यपूर्ण साम्राज्य स्थापित कर सके। और हर प्रेममय माता पिता की ही तरह वे सिर्फ इतने पर नहीं रुके परमात्मा चाहते थे की उनकी संताने स्वर्ग का अनुभव करे इसलिए उन्होंने धरती पर ही स्वर्ग का निर्माण किया और उस स्वर्ग को नाम दिया गया "कश्मीर " 
लेकिन मानव ने अपनी शक्ति के दुरूपयोग से इस जन्नत को बना दिया जलता हुआ दोज़ख।  ये है कहानी कश्मीर की  
जून १९४७ 
लार्ड माउंटबेटन, कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने बटवारे के कागज़ातों पर दस्तख़त किये अंग्रेज़ो ने ऐलान किया की जो ५६२ रियासते भारत के प्रत्यक्ष शासन का हिस्सा नहीं थी  वो भारत अथवा पाकिस्तान का हिस्सा बन सकती है या मुक्त देश  के रूप में रह सकती है कश्मीर के महाराजा हरिसिंह जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र रखना चाहते थे। उनका सपना था की जम्मू-कश्मीर एशिया का स्विट्जरलैंड कहलाये महाराज भारत और  पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक संबंध नहीं बिगाड़ना चाहते थे
इसलिए उन्होंने दोनों देशो के साथ यथास्थिति करार करने का फ़ैसला किया। 
उन्होंने पाकिस्तान के साथ अगस्त में समझौते पर दस्तख़त करवाये।
और भारत के साथ वैसा ही करार करने की बातचीत शुरू की 
लेकिन अक्टूबर में ही पाकिस्तान ने कश्मीर पर लस्कर से आदिवासी आक्रमण करके समझौते का उलंघन कर दिया।
पाकिस्तान ने कश्मीर के पश्चिमी भाग पर कब्ज़ा कर के उसका नाम रखा आज़ाद कश्मीर। 
( कमाल की बात है की आज़ाद नाम वाला कश्मीर दरअसल पाकिस्तान के कब्ज़े में है। )
जब परिस्थिति राजा हरिसिंह के हाथों से बाहर जाने लगी तब उन्होंने सैन्य सहायता के लिए भारत सरकार के दरवाज़े खटखटाएं। जिस पर पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ-भाई पटेल ने महाराजा हरिसिंह के सामने कश्मीर को भारत में परिग्रहण करने का प्रस्ताव रखा। इस विषय पे आगे चर्चा करने पर सरदार पटेल ने महाराजा हरिसिंह को कश्मीर परिग्रहण संधि के लिए राज़ी करवालिया। इसके बाद कश्मीर और भारत के बीच परिग्रहण की संधि पर हस्ताक्षर हुए, जिसमे धरा ३७० का प्रावधान था। धरा ३७० के तहत भारत की केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर से जुड़े कोई भी कानून बिना जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार की सहमति के लागु नहीं कर सकती इस संधि के बाद कश्मीर भारत का अभिन अँग बन गया, और सारे कश्मीरी भारतीय। मगर इस धरा के रहते कोई भी भारतीय, जो कश्मीरी नहीं है, उन्हें कश्मीर में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं है और ना ही कश्मीर में मतदान का अधिकार है।  इसके अलावा विभाजन के दौरान बेघर हुए हिंदुओ को लगातार नागरिकता से इंकार कर दिया गया है। नतीजतन हिन्दुओं को राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक भेदभाव का शिकार होना पड़ा, और वो अपने पुस्तैनी घर, ज़मीन और जायदात से हाथ धो बैठे। परिग्रहण के बाद शैख़ अब्दुल्लाह जम्मू-कश्मीर राज्य के पहले मुख्या मंत्री बनाये गए। शैख़ अब्दुल्लाह राष्ट्रीय सम्मेलन के नेता थे। वो महाराजा के शासन के खिलाफ था और मुक्त कश्मीर की भाषा बोला करता था। जैसे ही परिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर हुए भारतीय सेना ने हल्ला बोला और पाकिस्तानी सेना को मुहतोड़ जवाब दिया और एक ही दिन में श्रीनगर का पदभार संभल लिया। १९६५ में पाकिस्तान ने फिर हमला किया, इस जंग को द्वितीय कश्मीर युद्ध कहा गया। पांच हफ्तों तक चले इस जनसंहार में दोनों तरफ को भारी जान माल का नुक्सान हुआ। हज़ारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। ये जंग संयुक्त राष्ट्र के अनिवार्य संघर्ष विराम और ताशकंद घोषणा जारी करने के बाद समाप्त हो गया। लेकिन शान्ति संधि को बरक़रार नहीं रखा गया है। 
पाकिस्तान के बार-बार हमलों की बदौलत बोहत से युद्ध हुए ।
और इस जनसंहार से कोई समाधान नहीं निकला है, सिर्फ दोनों मुल्कों को भरी नुकसान हुआ है।
क्योंकि शांति कभी जंग से नहीं खरीदी जा सकती।
आक्रमणकारी १९४७ से ही कश्मीर में जगह-जगह छुपे हुए है और ऑयल-बढ़ रहे है।
आज भी ये, लोगों के दिलों में नफरत, डर और हिंसा की आग लगा रहे है।
ये लोगो के दिलो-दिमाग में ऐसे विचार भरते है की उन्हें लगने लगता है की वे भारत के बलपूर्वक शासन के अधीन हैं।
और भारत एक कट्टर हिंदूवादी देश है, और उनके कश्मीरियों के प्रती अन्यायपूर्ण और अनैतिक हैं।
भोले-भाले, गरीब, बेरोज़गार और अनपढ़ इनके झांसे में आ जाते है।
वो अपनी कोशिश हर तरह से करते हैं, यहाँ तक की मीडिया का भी इस्तेमाल करना उन्हें खूब आता है।
इस भीषण संघर्ष में हज़ारों मासूम, बेगुनाह कश्मीरियों की जाने गयीं है और अनगिनत ज़िंदगियाँ बर्बाद हुई हैं।
कश्मीरी पंडितों को मजबूरन अपना सब कुछ पीछे छोड़ कर जाना पड़ा।
किसी ने उन्हें रोकने की कोशिश तक नहीं की और उस दिन कश्मीर के नाम पर एक कभी ना मिटने वाला दाग लग गया।
आज भी कश्मीरी पंडित रेफ्यूजी कैंपो (शरणार्थी शिविर) में रह रहे हैं और कोई उनकी मदद करने तक को तैयार नहीं है।
आजकल सुर्खियों में मानव अधिकार के मुद्दे चर्चित हैं।
कश्मीर में मानव अधिकार उल्लंघन के बहुत ज़्यादा मामले सामने आते रहते है।
जून १९९३ में प्रकाशित "द ह्यूमन राइट्स क्राइसिस इन कश्मीर" के अनुसार।
कश्मीरी सुरक्षा बल यत्ना देने के लिए विविध प्रकार के अनैतिक और असंवैधानिक तरीके वापरते हैं।
इन सब में बुरी तरीके से पीटना, हाथापायी, शारीरिक शोषण, मानसिक शोषण, लैंगिक शोषण, जलना, गरम धातुओं से दागना, मानसिक हानि और बेज़्ज़ती, ये सारे तरीके हैं।
सिक्योरिटी फ़ोर्सेज़ बार-बार हॉस्पिटलों और मेडिकल सुविधाओ पर छपे मारते हैं, यहाँ तक की बच्चो, महिलाओं और बूढो के अस्पतालों तक को नहीं बक्शा जाता।
लेकिन मिलिटेंट्स भी मानव अधिकार के उल्लंघन की सीमाओ को पार कर रहे है और ओनके ये अपराध दर्ज नहीं होते।
सेना के ऊपर औरतो और बच्चों तक को जान से मारने का लांछन है।
और अलगाववादी इन बातो को तूल दे रहे हैं।

क्योंकि जो दीखता है, ज़रूरी नहीं की वो हमेशा सच हो।

काफी बच्चों को कश्मीर में बचपन से ही बहकाया जाता है और उनको आतंकवाद की रह पे ले जाया जाता है।
इतना ही नहीं, कई महिलाओं को आतंकवादी संगठनों में सक्रिय पाया गया है।
ये आतंकवादी और मिलिटेंट्स आम जनता में ही बसे हुए हैं की इन्हे पहचानना मुश्किल है।
कई बार ये लोग सेना के भेस में हमले करते हैं।
इन मिलिटेंट्स और आतंकवादियों के दिमाग बोहोत घातक तरीके से ट्रैंड और ब्रेन वाश की उन्हें ज़िंदा छोड़ना बहुत खतरनाक है।
इसलिए कभी-कभी मुश्किल फैसले लेने पड़ते हैं

यहाँ आप एक बम प्लांटेशन देख रहे हैं।
बम को सर्जरी के द्वारा सुसाइड बॉम्बर के शरीर में डाला जा रहा है।
हमारा संविधान कहता है की भले ही १०० गुनहगार छूट जाए, लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहीए।
मगर क्या ये इन हालातों में संभव है?
क्योकि अगर सेना कुछ निर्दोष जाने बचने के लिए इन आतंकवादियों को छोड़ दे, तो कई और जाने दाव पर लग जाएगी।
लेकिन फिर जिनके अपने ऐसे हालातों में मारे जाते हैं, उनके दिल सेना और देश के लिए नफरत से भर जाते है।
कहा जाता है की सत्ता और ताकत इंसान को भ्रष्ट बना देती है। मगर दरअस्ल जब सत्ता और ताकत भ्रष्ट लोगो के हाथ में आती है तो सत्ता और ताकत भ्रष्ट हो जाती है। ऐसे कई मामले देखने में आये है जहाँ आला अफ़सरों ने अपने औहदे का दुरूपयोग कर बलात्कार, हत्या और लूट जैसे गंभीर अपराध किये है ।
अगर कश्मीरी जनता सेना का समर्थन करे तो उन्हें मिलिटैंट्स के प्रतिशोध का सामना करना पड़ता है। अब दर्द की इन्तेहाँ इतनी हो गयी है की कश्मीरी जनता इतनी परेशान, इतनी सेहमी, इतनी उलझी हुई है की न अब उन्हें भारत चाहिए न ही पाकिस्तान। अब वो अलगाव की मांग कर रहे है ।
मगर क्या अलग होना इस समस्या का हल है?
हमने एक बार पार्टीशन देख लिया है,
और वो घातक गलती दोहरानी नहीं चाहिए।
और अगर ऐसा हो जाये तोह क्या उसके बाद भी कोई गारंटी है की पाकिस्तान कश्मीर पर फिर हमला नहीं करेगा?

फिर इस समस्या का समाधान क्या है?
कश्मीर की सबसे बड़ी समस्या है गरीबी और बेरोज़गारी।
धरा ३७० के तहत वहाँ पर कोई बाहरी कंपनी निवेश नहीं कर सकती।
जिसके कारण वहाँ कोई कंपनी अपना व्यवसाय नहीं फैला सकती।
इस वजह से वहाँ रोज़गार और आय के स्त्रोत नहीं बढ़ रहे।
धरा ३७० को समाप्त करना इस समस्या का एक संभव समाधान हो सकता है।

Sunday, October 11, 2015

प्रेम-लीला

तुझे फिर फिर पाके फिर फिर खोने में मज़ा है।
तुझे फिर फिर पाके फिर फिर खोने में मज़ा है।
क्योंकि जब पा ही लिया, तो खोना क्या है?

तू मेरी, मैं तेरा इसमें नया क्या है?
नया तो तब होगा, जब तुझे खो कर पाऊँ , पाकर खोऊँ, तू मेरी मैं तेरा ये भुला कर खोऊँ।
फिर तुझे पाऊँ , याद करू और याद दिलाऊँ ।
कभी तू ढूंढे मुझे, कभी मैं तेरे पीछे पीछे आऊँ।

प्रेम महज़ हमारा संगम नहीं है।
प्रेम तो सफर है, तलाश है।
चलो अब संगम हुआ पूरा,
फिर भूल जाये एक दूसरे को सनम।
और फिर मिले अजनबी की तरह । प्यार की छुपी छुपी दबी दबी तलाश में।
फिर ढूँढू मैं खुदको तुझमे,
 तू ढूँढे अपने को मुझमे।
फिर खोये हम बचकाने ख़्वाबों में।
फिर वही शान्ति की खोज में जाऊँ।
हार के अपना सब कुछ तुझमे,
फिर बैठ किनारे प्रेम-पीड़ा के गीत बनाऊ।
नदियों को सुनाऊँ।
तुझे फिर फिर खोऊँ, फिर फिर पाऊँ।

- दुर्गेश



कुछ बोलो मत


साँसों को बात करने दो,
कुछ बोलो मत । 

धड़कन को आवाज़ करने दो,
कुछ बोलो मत । 

आँखे भी करती है बहुत कुछ बयाँ,  
बयान उनको ही जज़्बात करनेदो,
कुछ बोलो मत ।

रगो में जो छायी है खुमारी
ज़रूरत है इन्हे बस तुम्हारी । 

खुमारी को और बढ़ने दो,
कुछ बोलो मत ।

लब्ज़ो में गुम हो जाते है एहसास,
एह्सांसों को महसूस करने दो, रूह तक उतरने दो, जीवन में भरने दो,
कुछ बोलो मत । 


- दुर्गेश