Monday, November 21, 2016

बेबसी

मैंने देखा है, हर खूबसूरत फूल को मुरझाते हुए।
मैंने देखा है, खाली पन्नों को द्वेष की स्याही में नहाते हुए।
मैंने जाना है, उस बेबसी को जो फूल को गलत रिझान से रोक नहीं पायी।
मैंने महसूस किया है उस कलम को जिसने पन्नों की सारी संभावनाएं मिटाई।
काश के वह फूल सही जगह पहुंच पाते।  
काश कि उन पन्नों में प्रेम गीत लिखे जाते।  
उन फूलों के रुझान से ही वो कूचले गए।  
उन पन्नों की उपलब्धता से ही वो भरे गए।
मेरे लाख समझाने पर भी कुछ ना हो सका।
और मैं, बेबस देखता रहा।  
क्योंकि, उनकी गति उनकी इच्छा का ही प्रतिफल थी।
और हजारों फूल, हजारों पन्ने, इन्हीं इच्छाओं की बलि चढ़ते जाते हैं…  चढ़ते जाते हैं!


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